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lagti manzil ab kareeb hai,is haar se itna hi sikha.. |
इस हार से इतना ही सीखा,
हौसलें मन के मेरे,
एक बात मुझसे कह गई,
मंज़िल ही थी वो बदनसीब,
जो अछूत तुझसे रह गई,
वरना जीत की क्या औकात,
जो तुझको यूँ ठुकरा दे,
और क्या दम दुनिया में इतना,
जो इरादे तेरे झुका दे,
बदल सकता मेहनत से तू,
किस्मत में रब का भी लिखा,
लगती मंज़िल अब करीब है,
इस हार से इतना ही सीखा,
थकान है क़दमों में पर,
हौसलों में अब भी जान है,
होठों पर हँसी है चाहे,
दिल में दर्द का तूफ़ान है,
हालातों में उलझ के कभी,
मन भी रहता परेशान है,
पर लौट जाने का ख्वाब मन को,
न दिखेगा न अब तक है दिखा,
लगती मंज़िल अब करीब है,
इस हार से इतना ही सीखा!
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