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ज़िन्दगी बस इनमे गुजर रही, किस्से तेरे और शब्द मेरे.........

zindagi bas inme gujar rahi,kisse tere aur shabd mere..
ज़िन्दगी बस इनमे गुजर रही,
किस्से तेरे और शब्द मेरे,
यादें करती है रह रह कर,
मन में हर बार कोई नयी हलचल,
ज़हन में खिंच के लाती है,
बीती यादों के बीते पल,
कहती है यूँ न निकलेगा,
उलझनों का तेरी कोई हल,
चल आज भर याद कर ले,
भूल जायेंगे उसको कल,
क्यों आज भी है बस ज़ुबान पर,
जिक्र तेरी और बोल मेरे,
ज़िन्दगी बस इनमे गुजर रही,
किस्से तेरे और शब्द मेरे,
दूरियां बढ़ गई फिर भी,
प्यास तेरी है दिल में अब भी,
यादों में तेरे रहने की,
आदत मेरी है वही अब भी,
चली गई तू दूर भले पर,
बदली न कुछ चीजें अब भी,
रात के अब भी २ ही पहलु,
नींद मेरी और ख्वाब तेरे,
ज़िन्दगी बस इनमे गुजर रही,
किस्से तेरे और शब्द मेरे!

कह भी दे होठों से अपने, मैं रांझा तू हीर मेरी............

main ranjha tu heer meri..
हर तलाश थम गई है मेरी,
जिस दिन से तुझको पाया है,
कहाँ उसके बाद कोई,
पसंद दिल को आया है,
चलूँ राह तनहा ही पर,
दीखता उसमे तेरा साया है,
एहसान मंद हु वक़्त का मैं,
जो तुझे करीब मेरे लाया है,
बस तेरी हाँ एक सुन लू जो,
संवर जाये तक़दीर मेरी,
अब कह भी दे होठों से अपने,
मैं रांझा तू हीर मेरी,
तू कह दे कुछ यु भी तो,
हर बात तेरी मुझसे पहले,
मतलब न हो चाहे कुछ भी,
दो पल को सही मेरा दिल तो बहले,
छोड़ हर रस्म रिवाज़ तू,
आजा संग में मेरे जी ले,
अपनी ही मर्ज़ी तू चला,
नखड़े तेरे दिल हस के सह ले,
साथ तेरा ना हो लगता,
खुशियों की हर नींव अधूरी,
अब कह भी दे होठों से अपने,
मैं मिर्ज़ा तू साहिब मेरी,
जानती है तू भी अच्छे से,
मेरी ज़िन्दगी में बस तू ही है,
ख्वाब हैं पलकों में भले,
पर हर सपने में तू ही है,
जिक्र तेरा ही होता है,
मेरी कही हर बातों में,
ख्वाबों में भी तेरा ही चेहरा,
दीखता है मुझे हर रातों में,
तुझसे हीं शुरू तुझपे हीं खत्म,
ना चाहा किसी को तेरे बाद,
अब तू भी कह दे होठों से अपने,
तू शिरीन मेरी मैं तेरा फरहाद!

लगती मंज़िल अब करीब है, इस हार से इतना ही सीखा............

lagti manzil ab kareeb hai,is haar se itna hi sikha..
लगती मंज़िल अब करीब है,
इस हार से इतना ही सीखा,
हौसलें मन के मेरे,
एक बात मुझसे कह गई,
मंज़िल ही थी वो बदनसीब,
जो अछूत तुझसे रह गई,
वरना जीत की क्या औकात,
जो तुझको यूँ ठुकरा दे,
और क्या दम दुनिया में इतना,
जो इरादे तेरे झुका दे,
बदल सकता मेहनत से तू,
किस्मत में रब का भी लिखा,
लगती मंज़िल अब करीब है,
इस हार से इतना ही सीखा,
थकान है क़दमों में पर,
हौसलों में अब भी जान है,
होठों पर हँसी है चाहे,
दिल में दर्द का तूफ़ान है,
हालातों में उलझ के कभी,
मन भी रहता परेशान है,
पर लौट जाने का ख्वाब मन को,
न दिखेगा न अब तक है दिखा,
लगती मंज़िल अब करीब है,
इस हार से इतना ही सीखा!

ऐ ज़िन्दगी थोड़ा तेज़ चल, मुझे मंज़िल बुला रही है......

ay zindagi thoda tez chal,mujhe manzil bula rahi hai..
ऐ ज़िन्दगी थोड़ा तेज़ चल,
मुझे मंज़िल बुला रही है,
देख चूका रंग दुनिया के,
फिर तू किस ज़िद्द पे अड़ गया,
राह तेरे चाहत की है,
फिर तू धीमा  क्यूँ पड़ गया,
जाग जा कच्ची नींद से अब,
संभाल ले अपने क़दमों को,
लय जीत का बनाये रख,
समेटते हुए हर लम्हों को,
रखते हुए यादें दिलों में,
महसूस कर इन बातों को,
प्यास नए ज़िन्दगी की अब,
आलस सब दूर भगा रही है,
ऐ ज़िन्दगी थोड़ा तेज़ चल,
मुझे मंज़िल बुला रही है,
सच की चौखट से झांक रहे,
वो सपने शायद मेरे हैं,
सच होने की उम्मीद लिए,
वो ख्वाब कितने सुनहरे हैं.
देख देख उन ख्वाबों को ही,
सोच ख़ुशी मंज़िल पाने की,
दिल फिर से नए दिनों के,
नए नए ख्वाब सजा रही है,
ऐ ज़िन्दगी थोड़ा तेज़ चल,
मुझे मंज़िल बुला रही है!

अब एहसास ये होता है, वो बचपन कितना अच्छा था......

ab ehsaas ye hota hai,wo bachpan kitna achha tha..
अब एहसास ये होता है,
वो बचपन कितना अच्छा था,
बस बोलने की देरी थी,
हर ख्वाइश ही पूरा होता था,
गलती भी कुछ हो जाए तो,
कोई मुझसे खफा न होता था,
हस्ते हस्ते रो देना और,
रोते रोते हस लेना,
अपनी खास चीजों को भी,
गलती से अपनी खो देना,
नटखट था थोड़ा भले ही मैं,
पर दिल का बहुत सच्चा था,
अब एहसास ये होता है,
वो बचपन कितना अच्छा था,
ज़िद्द न होती थी मन में,
इक खास को ही पाने की,
आदत थी उन दिनों जैसे,
जो मिले उसे अपनाने की,
पल भर में चाहत बदल थी जाती,
तब दिल शायद इतना कच्चा था,
अब एहसास ये होता है,
वो बचपन कितना अच्छा था!

मिलेगी मंज़िल मेरे भी दिल की, बस थोड़ा सा इंतज़ार और...........

milegi manzil mere bhi dil ki,bas thoda sa intzar aur..
ज़िन्दगी हर पल राहों में है,
न जाने चल दे कब किस ओर,
ये है अपने मर्ज़ी की मालिक,
न है इसपे कोई मेरा ज़ोर,
बस चल रहे हैं आस में,
मंज़िल की अपनी तलाश में,
इन राहों के हर पड़ाव पर,
करते हुए हर बातों पे गौर,
मिलेगी मंज़िल मेरे भी दिल की,
बस थोड़ा सा इंतज़ार और,
कभी अकेले तो कभी साथ में,
कभी रास्तों को हम निहारते,
कभी टूट जाते हम खुद ही,
तो कहीं रिश्तों को हम सँभालते,
कच्चे पक्के इन रास्तों पर,
जारी है ज़िन्दगी की भाग दौड़,
मिलेगी मंज़िल मेरे भी दिल की,
बस थोड़ा सा इंतज़ार और!

इश्क़ के इन कच्चे रंगों में, क्या तुम भी रंगना चाहोगी, पूछ के दिल से बता दो इतना, क्या मेरी होना चाहोगी......

puch ke dil se bata do,kya meri hona chahogi..
करीब आओ एक बात बताऊँ,
धड़कन की सौगात बताऊँ,
तेरे ही ख्वाबों से लिपटे,
मेरे दिन और रात बताऊँ,
तुम जान न सके अब तक जो,
साथ रह कर भी मेरे,
अनजान हो तुम जिन बातों से,
तुम्हे अपने मैं हालात बताऊं,
होता हूं जिनमे मैं खोया,
तुम्हे वो मेरे खयालात बताऊं,
कैसे कटते हैं बिन तेरे,
पहर वो तुम्हे मैं आठ बताऊं,
बताऊँ तुम्हे अहमियत तुम्हारी,
है हर पल मेरे दिल में क्या,
तुम साथ हो तो सब पास मेरे,
वरना कोई महफ़िल ही क्या,
मैं जैसे कोई कविता हूं प्रेम का,
और तुम हो उसका मूल अर्थ,
तुम पढ़ो मुझे तो हीं मायने,
वर्ना मेरी हर कोशिश व्यर्थ,
तुम हो जैसे सरगम इस दिल की,
मैं हूं कोई प्रेम राग,
बीते कल में जो तुम ना मिलते,
जाने कैसा होता मेरा आज,
बिन तेरे रातें तन्हा मेरी,
बिन तेरे सूने मेरे दिन हैं,
तुम ना हो तो सब कुछ मुश्किल,
तुम साथ हो तो सब मुमकिन है,
एक अजब खुमारी है दिल में,
जिस दिन से तुझको जाना है,
गवाह है ये धड़कन मेरी,
किसी और को अपना न माना है,
लट्टू हैं एक अरसे से तुम पे,
जानता ये सारा ज़माना है,
तुमने तो अब है जाना मुझे,
मेरी वफ़ा का रंग पुराना है,
कोशिश हर बार रहती है यही,
रख सकूँ ख्याल खुशियों का तुम्हारी,
हर हाल में तुम्हे हसाऊँ मैं,
न बनूँ वजह उदासियों का तुम्हारी,
आज एक उम्मीद ले कर आया हूँ,
कि अब तुम भी कदम बढ़ाओगी,
कल तक जो सपने थे बस,
उन्हें हक़ीक़त में अपनाओगी,
जो ख्वाबों में तुमने देखा है,
खुशियों का हर वो पल दूंगा,
वादा हीं नहीं है यकीन भी,
तुम्हे आज से बेहतर कल दूंगा,
तुम पर न कोई दबाओ है मेरा,
तुम्हारा फैसला होगा मंजूर मुझे,
बस जो सुनिश्चित कर लो राहें,
इक बार बताना जरूर मुझे,
लो कह दिया हाल-ऐ-दिल अपना,
अब जान लूँ मैं भी ख्वाइश तुम्हारी,
और तेरे इस जवाब में सिमटी,
जहाँ भर की हर खुशियां हमारी,
की इश्क़ के इन कच्चे रंगों में,
क्या तुम भी रंगना चाहोगी,
पूछ के दिल से बता दो इतना हीं,
क्या तुम मेरी होना चाहोगी!

ज़िन्दगी बड़ी अनमोल है, हर पल का बस मजा लो......

zindagi badi anmol hai,har pal ka bas maja lo..
ज़िन्दगी बड़ी अनमोल है,
हर पल का बस मजा लो,
हँसने के मौके ढूंढो तो,
क्यूँ बैठे हो यु रूठ के,
भुलाओ बीती बातों को,
क्या जीना ऐसे टूट के,
मिलती है ये इक बार ही,
मर्ज़ी से इसे बिता लो,
वक़्त के हर पल को हीं,
पसंद से अपनी सजा लो,
ज़िन्दगी बड़ी अनमोल है,
हर पल का बस मजा लो,
रूठी है अगर ये दुनिया तो,
दुनिया को रूठ जाने दो,
पर टूटे जो कभी रिस्ते तो,
रिश्तों को यूँ न बिखड़ने दो,
करो कोशिशें दिन रात ही,
सपनो को सही मुकाम दो,
दिल से भी कभी पूछ लो,
दिमाग को थोड़ा आराम दो,
कुछ फैसलों में हीं सही,
पर दिल की अपनी रज़ा लो,
ज़िन्दगी बड़ी अनमोल है,
हर पल का बस मजा लो!

हर बार यही सोचा हमने, शायद कल बेहतर होगा.......

har baar yahi socha humne,shayad kal behtar hoga..
खुशियों ने जब भी आँखें मूंदी,
दर्द का बादल जब भी छाया,
या जब कभी अकेलेपन में,
दिल तनहा हो कर घबराया,
उलझे मेरे मन में बस,
हर बार एक ही ख्याल आया,
शायद कल बदलेगा दिन,
दूर दिल से हर डर होगा,
हर बार यही सोचा हमने,
शायद कल बेहतर होगा,
दर्द हुआ दिल में हर बार,
जब कोई अपना हमसे रूठा,
न चाहते हुए भी सफर में,
जब भी किसी का हाथ छूटा,
खुलते ही नींद पलकों में,
न जाने कितना ख्वाब टूटा,
तब दिल ने खुद को आशा दिया,
खुशियों का फिर से दिलाशा दिया,
कल होंगे पूरे ख्वाब सारे,
सपनो से सजा हर मुकाम होगा,
हर बार यही सोचा हमने,
शायद कल बेहतर होगा!

बढ़ते कदम मंज़िल की ओर.......

जब इरादा है मेरा जीत का,
तो हरा नहीं सकता है कोई,
अब चल पड़े हैं तो रुकने का,
badhte kadam manzil ki or...
सवाल नहीं बनता है कोई,
बस जाएंगे हर पल आगे अब,
भुला के बीती बात को,
हक़ीक़त के रंगों से अपने,
सजायेंगे दिन और रात को,
अब असर जरूर दिखाएगी,
माँ की की हुई हर दुआ,
संभालेगी ये मुझको तब,
मैं जो कभी कमज़ोर हुआ,
अब कहाँ रोक पायेगा हमें,
हार का फैला ये शोर,
दिल की अपनी दुनिया के तरफ,
बढ़ते कदम मंज़िल की ओर!

थाम कर हाथों में पेंसिल, एक बार मेरी खातिर लिख दे.......

tham kar haathon me pencil,ek baar meri khatir likh de..











थाम कर हाथों में पेंसिल,
एक बार मेरी खातिर लिख दे,
वक़्त न जिसे बदल पाए,
ऐसी मेरी तक़दीर लिख दे,
जो कह न सके होंठ मुझसे,
वो थोड़े से बात लिख दे,
ख्वाबों में अक्सर ढूंढते हैं,
मिलन के अब दिन रात लिख दे,
थाम कर हाथों में पेंसिल,
एक बार मेरी खातिर लिख दे,
दिल में जो है मेरे लिए,
वो थोड़े जज़्बात लिख दे,
दूरियां बहुत सह ली हमने,
कुछ पल की अब मुलाक़ात लिख दे,
और अगर मैं तेरे लायक नहीं,
तो मेरी औकात लिख दे,
थाम कर हाथों में पेंसिल,
एक बार मेरी खातिर लिख दे!

हम इतनी जल्दी क्यों बड़े हो गए.....

hum itni jaldi kyun bade ho gaye....
न जाने क्यों ये वक़्त,
इतनी तेज़ी से बढ़ रहा है,
हर पल में इस जीवन का,
रंग बदल रहा है,
बचपन के वो खेल,
स्कूल की वो गलियां,
वो हर चीज़ को पाने की चाहत,
सुनहरे से वो ख्वाब,
न जाने कहाँ खो गए,
जल्दी बड़े होने की चाहत थी कभी,
और अब सोचते रहते हैं,
हम इतनी जल्दी क्यों बड़े हो गए,
कल तक जिन कन्धों पे,
किताबें हुआ करती थी,
आज उन्ही कन्धों पर,
जिम्मेदारियों के कई पूल बंध गए,
जिन अपनों में कल तक खोये रहते थे,
आज दूर उनसे रहने को मजबूर हो गए,
जल्दी बड़े होने की चाहत थी कभी,
और अब सोचते रहते हैं,
हम इतनी जल्दी क्यों बड़े हो गए!

न जाने मेरे ख्वाबों की, अब ये साज़िश है.......

na jaane mere khwabon ki,ab ye sazish kaisi hai..
न जाने मेरे ख्वाबों की,
अब ये साज़िश है,
अजीब से कुछ ख्यालों में,
खोया हुआ रहता है ये दिल,
उलझ रहा है मन को भी,
दिखा के कई नयी मंज़िल,
बदलते सपनो के इस भवर में,
लगता है खो जाने का डर,
कमज़ोर होते दिख रहे,
मेरे ये विश्वास के पर,
ऐसा लगता है दिल मेरा,
अब मेरे ही खिलाफ है,
चाहत है क्या इसकी मुझसे,
मकसद न कुछ भी साफ़ है,
खुद को ही खो देने की,
खुद से ये रंजिश कैसी है,
न जाने मेरे ख्वाबों की,
अब ये साज़िश कैसी है!

एक दिन ये मेहनत मेरी, देखना रंग लाएगी जरूर.......

ek din ye mehnat meri,dekhna rang layegi jaroor..
एक दिन ये मेहनत मेरी,
देखना रंग लाएगी जरूर,
बस शौक नहीं है ये मेरा,
एक जूनून है जैसे लिखने का,
लाखों लोगों की भीड़ में,
चाहत थोड़ा अलग है दिखने का,
सिखने की कोई उम्र नहीं,
मैं तो आज भी सीखता हु,
और पल पल ज़िन्दगी की हलचल को,
शब्दों में बस लिखता हूँ,
भावनाओं में पिरोये शब्द ये मेरे,
यकीन है मंज़िल पायेगी जरूर,
एक दिन ये मेहनत मेरी,
देखना रंग लाएगी जरूर,
हक़ीक़त की ये दुनिया जब,
ख्वाबों को मेरे निहारेंगी,
चीख चीख के दुनिया तब,
मेरा नाम पुकारेगी,
विश्वास है अपनी कलम पे,
एक दिन ये ऐसा लाएगी,
तमाम दुनिया की खुशियां,
खुद चल के पास आएगी,
चाहत भरी  मेरी राहों पे,
ज़िन्दगी ये कभी जाएगी जरूर,
एक दिन ये मेहनत मेरी,
देखना रंग लाएगी जरूर!

मंज़िल की तलाश में हूँ, दिल्ली की तंग गलियों में.....

manzil ki talash me hu,dilli ki tang galiyon me..
मंज़िल की तलाश में हूँ,
दिल्ली की तंग गलियों में,
हर रोज नयी उम्मीद ले के,
सुबहें ये रोज आती है,
रास्ता मेरी मंज़िल का,
मेरी ज़िन्दगी मुझे बताती है,
चल कर उन राहों पर ही,
मैं मंज़िल अपनी धुंध रहा,
फूल धुंध रहा खुशियों के,
ख्वाबों की खिलती कलियों में,
मंज़िल की तलाश में हूँ,
दिल्ली की तंग गलियों में,
ख्वाइशों को मनन में लिए,
खुद से थोड़ा मगरूर हूँ,
यादों में ही जीत हूँ,
घर से भी काफी दूर हूँ,
दूरियों के एहसास में ही,
दिल में लिए रिश्तों को अपने,
जी रहा हूँ हर पल को,
करने को पूरे कुछ सपने,
अपने खुशियों की चाह में या,
वक़्त की रंग रलियों में,
मंज़िल की तलाश में हूँ,
दिल्ली की तंग गलियों में!

छोटी सी इस ज़िन्दगी की, बड़ी बड़ी सी ख्वाइश है......

choti si is zindagi ki,badi badi si khwaish hai..
छोटी सी इस ज़िन्दगी की,
बड़ी बड़ी सी ख्वाइश है,
पता नहीं कल क्या होगा,
न जाने ज़िन्दगी कैसी होगी,
पलकों पर जो ख्वाब हैं,
पता नहीं पूरे होंगे भी,
पर अपनी तरफ से हर पल उन्हें,
पाने की आजमाइश है,
छोटी सी इस ज़िन्दगी की,
बड़ी बड़ी सी ख्वाइश है,
ख्वाबों की दुनिया अच्छी है,
हर बात आसान दिखती है,
म्हणत की भी चिंता नहीं,
हर चीज़ पास ही दिखती है,
हकीकत में इस ज़िन्दगी की,
बहोत सारी फरमाइश है,
छोटी सी इस ज़िन्दगी की,
बड़ी बड़ी सी ख्वाइश है!