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मुझे मेरा घर याद आता है........
मेरे यार मेरे दोस्त मेरे भाई, तुम बहुत याद आओगे....
मेरे यार मेरे दोस्त मेरे भाई,
तुम बहुत याद आओगे,
तुम्हारे किस्से तुम्हारी बातें,
अब भी सोचते हैं तो हंसते हैं,
न चाहते हुए भी आपस में,
जिक्र तुम्हारा कर हीं देते हैं,
किसी को यकीन
आज भी नहीं होता है की,
तुम जिस आशिकी पे सब की हंसते थे,
सीधे शब्दों में हम सब को,
अक्सर हीं तुम कोसते थे,
तुमसे तो बिलकुल भी किसी को,
उम्मीदें ऐसी थी हीं नहीं,
हम सब के बीच एक,
तुम्हीं तो समझदार लगते थे,
फिर तुम कैसे इक पल में,
जिंदगी से ऐसे हार गए,
सपने तुम्हारे भी थे फिर कैसे,
हर ख्वाइश को तुम मार गए,
आज भी पछतावा होता है,
की उन आखिरी पलों में हम में से
कोई साथ क्यों नहीं था तुम्हारे,
शायद कोई रहता उन पलों में,
तो होते तुम आज बीच हमारे,
इक बार सही पर हर दफा आपस में,
पूछते जरूर हैं एक दूजे से
की गलती आखिर थी किसकी,
तुम गलत थे या समय खराब था,
या वो शराबी दोस्त तुम्हारा,
साथ रह रहे थे तुम जिसके,
खैर इन बातों का कभी अंत न होगा,
तुमसे कहने को इतना कुछ है पास हमारे,
इक दफा घरवालों की हीं सोच लेते,
वो भी तो थे खास तुम्हारे,
तुम्हे खबर है क्या जरा भी,
तुम्हारे जाने के बाद,
मां का तुम्हारी हाल क्या था,
जिस दिन तुम गए
हम में से किसी को,
खाना तक रास न आ रहा था,
सुबह हीं तो बात हुई थी तुमसे,
यकीन नहीं हो रहा था की,
अब कभी लौट के तुम नहीं आओगे,
तुम खो चुके हो अनंत में अब,
वापस इस जनम में तो नहीं आओगे,
आते अगर तो पूछना था तुमसे,
की तुममें थी हिम्मत इतनी कहां से आई,
तुम तो बड़े डरपोक से थे,
फिर सांसें तुम्हारी खुद खतम करने को
खुद में हिम्मत कहां से जुटा पाई,
मालूम हुआ घर से तुम्हारे,
की उन आखिरी पलों में तुम रोए बहुत थे,
शायद तुम्हे पछतावा था अपने किए का,
बचा लो मुझे गलती हो गई,
उस पल में सबसे तुम ये कह रहे थे,
पर मेरे दोस्त तब देर चुकी थी,
सांसें तुम्हारी अब
तुम्हारी भी नहीं सुन रही थी,
दीपावली का दिन था वो,
और मातम पसरा था घर में तुम्हारे,
सांसें टूट गई थी अगले दिन और,
टूटे थे साथ उम्मीदें सारे,
हम सहमे थे कई दिन तक इतने की,
जिक्र तुम्हारा करने से भी डरते थे,
सोचते थे तुम्हे हीं बस,
और अंदर हीं अंदर मरते थे,
वक्त लगा पर धीरे धीरे,
जख्म सबके थे भरने लगे,
डिग्री पूरी हो गई थी अगले साल सब की,
सब जिंदगी में अपनी,
कुछ न कुछ थे करने लगे,
पर हां
तुम्हे भूले नहीं हैं,
सोचते हैं तुम भी अगर जो साथ होते तो,
जिंदगी में अपनी कुछ न कुछ तो जरूर होते,
खैर
अब तुम जहां कहीं भी
जिस दुनिया में हो,
खुश रहना तुम जहां भी हो,
तुम चाहे याद ना भी करो,
हमसे न भूले जाओगे,
मेरे यार मेरे दोस्त मेरे भाई,
जिंदगी तुम्हे फिर जी कर देखेंगे....
ज़माना कोशिशें नहीं देखता बस, परिणाम देखा करता है....
तुम्हारे हारने की राह,
ज़माना देख रहा एक टक से है,
लड़ाई तुम्हारी मन मेरे,
क़िस्मत से नहीं तुम्हारे हक़ से है,
करो कोशिश आखिरी सांस तक तुम,
परिणाम रब पे छोड़ दो,
ख़ामख़ा के लोगों से,
तुम चाहो तो रिश्ता तोड़ दो,
मंज़िल प्रतीक्षा में है तुम्हारी,
दिल को यही पैगाम दो,
जो भी मन की चिंताएं हैं,
उन चिंताओं को तुम विराम दो,
बहकाये जो मन को बातें कोई,
वो बात वहीँ फिर रोक दो,
जितनी भी तुममे शक्ति है,
सारी की सारी झोंक दो,
किसी को खबर नहीं तुमने सहा है कितना,
कोई यहाँ नहीं कभी संघर्ष देखा करता है,
तुम्हे कामयाब होना हीं होगा,
तुम्हे कामयाब होना हीं होगा,
ज़माना कोशिशें नहीं देखता बस,
परिणाम देखा करता है!
मैं यूं बसर कर पाऊंगा....
बेफिक्र मन से रास्तों पे अपने,
न जाने कब गुज़र मैं पाऊंगा,
अबकी जो मैं सहमा हूं खुद से,
मन की अज्ञात इस व्यथा से
जाने कब उबर मैं पाऊंगा,
जब दूर तलक
कोई अपना नहीं दिखता है मुझे,
तो मैं आईने से हूँ पुछ रहा,
गुमनामी के इस शहर में कब तक,
मैं यूं बसर कर पाऊंगा!
थोड़ी सी किस्मत रूठी है...
तकलीफें दिल में ले कर हुं चल रहा,
चेहरे की मुस्कान भले हीं झूठी है,
तय करूंगा मैं भी मंज़िल अपनी,
पूर्णतः आस अभी न टूटी है,
इक दिन झुकेगा आसमां भी,
तुम देखना खिदमत में मेरी,
लगन सच्ची इरादे नेक हैं मेरे,
बस थोड़ी सी किस्मत रूठी है!
किसी को मनचाहा किरदार नहीं मिलता...
करो कोशिशें कितनी भी चाहे,
ख्वाबों वाला वो संसार नहीं मिलता,
निकल जाए अगर हाथ से तो,
मौका यहाँ पे बार बार नहीं मिलता,
अजब है बातें इस दुनिया की,
अजब है दस्तूर इस दुनिया का,
किसी को जिंदगी नहीं मिलती तो,
किसी को मनचाहा किरदार नहीं मिलता!
थाम कर हाथों में पेंसिल, एक बार मेरी खातिर लिख दे....
थाम कर हाथों में पेंसिल,
एक बार मेरी खातिर लिख दे,
वक़्त न जिसे बदल पाए,
ऐसी मेरी तक़दीर लिख दे,
जो कह न सके कभी होंठ मुझसे,
वो थोड़े से बात लिख दे,
मैं कहां कह रहा मेरे हिस्से,
तू पूरी कायनात लिख दे,
इन टूटे अरमानों के बीच,
एक नई सी शुरुआत लिख दे,
ख्वाबों में अक्सर ढूंढते हैं,
मिलन के अब दिन रात लिख दे,
थाम कर हाथों में पेंसिल,
एक बार मेरी खातिर लिख दे!
सब मांगते हैं कल सुनहरा,
तू मेरा सुनहरा आज लिख दे,
नई मंजिल दे जा कोई,
नया कोई आगाज़ लिख दे,
रास्ता कल का बता दे या,
मेरे इश्क का अंजाम लिख दे,
तेरे हाथों अगर जीत नहीं तो,
मेरे हिस्से में मात लिख दे,
जो हक में हो वही देना मुझे,
नही चाहता मेरे हिस्से
तू कोई खैरात लिख दे,
तू ले जा सब तस्वीरें अपनी,
हिस्से में मेरे यादों की बारात लिख दे,
थाम कर हाथों में पेंसिल,
एक बार मेरी खातिर लिख दे!
दिल में जो है मेरे लिए,
वो थोड़े जज़्बात लिख दे,
दिल की इस बंजर जमीन के हिस्से,
थोड़ी सी बरसात लिख दे,
दूरियां बहुत सह ली हमने,
कुछ पल की अब मुलाक़ात लिख दे,
और अगर मैं तेरे लायक नहीं,
तो मेरी औकात लिख दे,
थाम कर हाथों में पेंसिल,
एक बार मेरी खातिर लिख दे!
कुछ यूँ ही.....
जब उलझनों में खुद को,
उलझा सा मैं पाता हूँ,
चलते चलते राहों में जब,
अचानक रुक सा जाता हूँ,
आईने में अक्सर जब,
खुद को तलाशता रहता हूँ,
लोग पूछते हैं वजह फिर भी,
जब लोगों से छुपाता हूँ,
तुम्हें सोचता हूँ,
तुम्हें खोजता हूँ,
तू दिखती ना जब पास मेरे,
मैं थोड़ा सहम सा जाता हूँ,
आज भी सब कुछ वैसा हीं है,
दिन वही रातें भी वही,
ज़िद्द वही बातें भी वही,
दिल ढूढ़ता फिर जवाब यही,
क्यूँ साथ मेरे अब तू नहीं
क्यूँ साथ मेरे अब तू नहीं....
नाकामियां साजिशें हैरानियाँ....
दिल को जो थे दुखने वाले!
जिस पे है गुजरी वही जाना है..
अब से जल्दी सोया करेंगे, मोहब्बत छोड़ दी मैंने..
थोड़ा शांत सा है हो गया,
मिल गया वो सुकून भी,
जो था कहीं पे खो गया,
उलझा था कुछ ऐसे की,
खुद को भी भूल बैठा था,
सुबह शाम दिन रात सब,
उसके नाम कर बैठा था,
वादों से बंधी जंजीर थी एक,
जो अब तोड़ दी मैंने,
अब से जल्दी सोया करेंगे,
मोहब्बत छोड़ दी मैंने,
कहती थी दुनिया मुझसे,
खुद से ज़्यादा न चाह किसी को,
सब अपने आप में उलझे हैं,
यहाँ प्यार की न परवाह किसी को,
देख बस तू सपने और,
राहें खुद अपनी बनाता चल,
टूटे मन जो कभी कहीं,
तो खुद मन को समझाता चल,
सुन लिया और समझ भी लिया,
सब भूल के जो अब तक किया,
बस अपने ख्वाबों की ओर,
ज़िन्दगी को नयी राह मोड़ दी मैंने,
अब से जल्दी सोया करेंगे,
मोहब्बत छोड़ दी मैंने..pankaj
बहुत जी लिया माँ दूर तेरे से, कुछ पल हीं साथ आ जाओ न..
छू कर माटी तेरे चरणों की,
मन भूखा है प्रण भूखा,
दिल भूखा तेरे शरणों की,
आ के उन यादों को हीं,
सहज भाव दे जाओ न,
बहुत जी लिया माँ दूर तेरे से,
कुछ पल हीं साथ आ जाओ न,
जाने का जादू होता माँ,
तेरे हाथों की उन रोटी में,
गुस्से में भी प्यार था तेरे,
गलती मेरी बड़ी या छोटी में,
आज अपनी गलती पे खुद को,
समझाना मुश्किल लगता है,
तेरे और मेरे समझाने में,
है फर्क समझ मुझे आता है,
इक बार फिर मेरी गलती पे,
डाँट कर थोड़ा समझाओ न,
बहुत जी लिया माँ दूर तेरे से,
कुछ पल हीं साथ आ जाओ न,
कभी नींद नहीं आती रातों में,
कभी डरता हूँ बुरे सपनो से,
गैरों में भी खुश नहीं हूँ,
और बचता भी हूँ अपनों से,
एक ज़िद्द है कुछ पाने की,
तुम्हारे उम्मीदों पर उतर जाने की,
रख दूँ क़दमों में तेरे ला के,
सारी खुशी इस ज़माने की,
फिलहाल फ़ोन हीं करता हूँ,
कोई लोड़ी हीं आज सुनाओ न,
बहुत जी लिया माँ दूर तेरे से,
कुछ पल हीं साथ आ जाओ न!
वो ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं, जिसमे न कोई उम्मीद हो....
बड़ी लम्बी गुफ्तगू करनी है, तुम आना एक पूरी ज़िंदगी ले कर....
मैं अब भी तेरे पीछे अपना, वक़्त ज़ाया करता हूँ....
वक़्त ज़ाया करता हूँ,
जाने क्या कर गई ऐसा तू की,
चाह के भी मैं संभल न पाया,
बदल गए हालात मेरे पर,
मैं खुद को कभी बदल न पाया,
कोशिशें ज़ारी रखी,
कहीं और दिल लगाने की पर,
हाथ थामे किसी और का,
२ कदम भी मैं चल न पाया,
सुकून की तलाश में खुद को,
अब भी सताया करता हूँ,
मैं अब भी तेरे पीछे अपना,
वक़्त ज़ाया करता हूँ,
मेरी ज़िंदगी में कोई याद नहीं,
जिसमे न जिक्र तुम्हारा हो,
कोई लम्हा कोई पल नहीं,
जिसमे न फिक्र तुम्हारा हो,
जारी हर पल यादों का दौर,
हर वक़्त हमारे दिल में है,
बेशक सिमटी है यादों में तू,
पर कमी तेरी महफ़िल में है,
तू थी कभी अब मैं खुद हीं,
खुद को सताया करता हूँ,
वक़्त के हाथों मैं खुद को,
हर पल आज़माया करता हूँ,
मैं अब भी तेरे पीछे अपना,
वक़्त ज़ाया करता हूँ,
यादों में रखता हूँ हर पल,
तेरे साथ गुजरे दिनों को,
व्यस्त भी रखता हूँ हर पल,
दिल दिमाग धड़कन तीनो को,
फिर भी मन के किसी कोने में,
तेरी याद आ जाया करती है,
लाख सम्भालो दिल को पर,
धड़कन खो जाया करती है,
तब खुद से खुद के गम अपने,
शब्दों में बताया करता हूँ,
मैं अब भी तेरे पीछे अपना,
वक़्त ज़ाया करता हूँ..pankaj
मुश्किलों को हराते है, चलो मुस्कुराते हैं....
चलो मुस्कुराते हैं,
उदासियों में रखा है क्या,
आओ थोड़ी खुशियाँ बांटते हैं,,
वर्षों पुराने ज़ख्मों को,
खुशियों से मात देते हैं,
बस तारीफें दुनिया से ले के,
हर तानों को ठुकराते हैं,
मुश्किलों को हराते है,
चलो मुस्कुराते हैं,
कल की उम्मीद पलकों में लिए,
इस सोच से आगे बढ़ते हैं,
लेते हैं थोड़ा उनसे हौसला,
जो नित्य पहाड़ चढ़ते हैं,
कुछ हौसला समंदर से भी,
जो पर्वत को भी घिसते हैं,
कुछ हौसलें नदियों से भी,
जो झरनों में से रिसते हैं,
ले कर सब उधर आज सब से,
कदम हम आगे बढ़ाते हैं,
अपनी हँसी के बीच में अपने,
हालात को आज छुपाते हैं,
मुश्किलों को हराते है,
चलो मुस्कुराते हैं,
कोई छीन नहीं सकता मुझसे मेरा,
जो मेरा नहीं वो खो के रहेगा,
गीता में भी साफ़ लिखा है,
जो होना है वो हो के रहेगा,
फिर क्यों कल की चिंता में,
आज को अपने खो देना,
जिन पलकों ने ख्वाब देखे इतने,
क्यों इनको है भिगो देना,
आओ सब कुछ को भुला के फिर से,
खुद को थोड़ा आज़माते हैं,
मुश्किलों को हराते है,
चलो मुस्कुराते हैं....pankaj
ए "ज़िन्दगी" तू कौन है....
सपनो की एक दुनिया है,
या अपनों का एक बंधन है,
खुशियों का अनोखा मेल है,
या रिश्तों का अदभुद खेल है,
रश्मों की एक डोर है,
या घुटन का एक शोर है,
जीने की कोई आज़ादी या,
मन का छिपा कोई चोर है,
बचपन की एक मिठास है,
या जीवन भड़ की प्यास है,
किस्मत की अनोखी हार है,
या अपनों का एक प्यार है,
मंज़िल की एक ढ़ाल है या,
दोस्ती की एक मिशाल है,
प्यार का एक ज़माना है,
या खुश रहने का बहाना है,
पलकों का बिछडा सपना है या,
दूर हुआ कोई अपना है,
खुशियों का कोई आफ़ताब है,
या बीती यादों का किताब है,
लाखों उलझन है जीवन के,
और जवाब छुपे हैं कण कण में,
हर रोज की यही कहानी है,
फिर आज क्यों ये परेशान है,
पूछने पर अब क्यों मौन है,
तू हीं बता दे अब खुद को,
ए "ज़िंदगी" तू कौन है!
हारा भी जरूर हूँ वक़्त से, पर अभी ज़िंदा हूँ मैं....
कल फिर लौट के आऊंगा,
जो चुन ली है मंज़िल अपनी,
उसे अंजाम तक पहुँचाऊँगा,
रोक सके तो रोक ले,
राह कि हर बाधा मुझे,
अब तो जान दे कर भी खुद से,
निभाना है हर वादा मुझे,
कुछ गलत फैसलों पे अपने,
भले हीं शर्मिंदा हूँ मैं,
हारा भी जरूर हूँ वक़्त से,
पर अभी ज़िंदा हूँ मैं,
देखा है अक्सर मैंने,
पंछियों को दूर उड़ते गगन में,
आसमा छूने कि चाह लिए,
देखी है ज़िद्द एक उनके लगन में,
कोशिशों से जो हारा न कभी,
आसमां का वही परिंदा हूँ मैं,
हारा भी जरूर हूँ वक़्त से,
पर अभी ज़िंदा हूँ मैं..
मत पूछो की किस तरह से, कट रही है ज़िंदगी, यारों उस दौर से गुजर रहा हूँ, जो की गुजरता हीं नहीं..
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mat pucho ki kis tarah se kat rahi hai zindgi.... |
कट रही है ज़िंदगी,
यारों उस दौर से गुजर रहा हूँ,
जो की गुजरता हीं नहीं,
कुछ पा लेने की चाह में,
हर दिन हीं कुछ खोता हूँ,
सह लेता हूँ कभी दर्द बड़े तो,
कभी छुपके पलकें भिगोता हूँ,
सहमा सा होता हूँ कभी,
हार जाने के दर से मैं,
बेशक जीता हूँ आज में हीं,
पर कल को भूल न पाता हूँ,
मानो वक़्त यूँ खफा है जो,
चाहकर भी ठहरता हीं नहीं,
मत पूछो की किस तरह से,
कट रही है ज़िंदगी,
यारों उस दौर से गुजर रहा हूँ,
जो की गुजरता हीं नहीं,
हर सुबह की नयी रौशनी सी,
कोई नयी चाह रोज दिल में जगती,
चलने की सोचूं आगे तो,
हर राह हीं तब आसान है लगती,
कोई पल जो दिल को भा जाता,
कोई मंज़िल नज़रों को जँच जाती,
तभी कुछ ऐसा हो जाता की,
हर ख़ुशी है फींकी पड़ जाती,
लड़खड़ाने को मजबूर हों मानो,
चाह कर भी संभालता हीं नहीं,
मत पूछो की किस तरह से,
कट रही है ज़िंदगी,
यारों उस दौर से गुजर रहा हूँ,
जो की गुजरता हीं नहीं..