छू कर माटी तेरे चरणों की,
मन भूखा है प्रण भूखा,
दिल भूखा तेरे शरणों की,
आ के उन यादों को हीं,
सहज भाव दे जाओ न,
बहुत जी लिया माँ दूर तेरे से,
कुछ पल हीं साथ आ जाओ न,
जाने का जादू होता माँ,
तेरे हाथों की उन रोटी में,
गुस्से में भी प्यार था तेरे,
गलती मेरी बड़ी या छोटी में,
आज अपनी गलती पे खुद को,
समझाना मुश्किल लगता है,
तेरे और मेरे समझाने में,
है फर्क समझ मुझे आता है,
इक बार फिर मेरी गलती पे,
डाँट कर थोड़ा समझाओ न,
बहुत जी लिया माँ दूर तेरे से,
कुछ पल हीं साथ आ जाओ न,
कभी नींद नहीं आती रातों में,
कभी डरता हूँ बुरे सपनो से,
गैरों में भी खुश नहीं हूँ,
और बचता भी हूँ अपनों से,
एक ज़िद्द है कुछ पाने की,
तुम्हारे उम्मीदों पर उतर जाने की,
रख दूँ क़दमों में तेरे ला के,
सारी खुशी इस ज़माने की,
फिलहाल फ़ोन हीं करता हूँ,
कोई लोड़ी हीं आज सुनाओ न,
बहुत जी लिया माँ दूर तेरे से,
कुछ पल हीं साथ आ जाओ न!
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