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वो ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं, जिसमे न कोई उम्मीद हो....

चाहे ज़िद्द हो ज़िंदगी से बड़ी या,
आसमां के सैकड़ों तारे हों,
वो हौसलें हारेंगे कैसे,
जो खुद से कभी न हारे हों,
है लगन अगर जो सच्ची दिल में,
तो मंज़िल पा कर हीं दम लेंगे,
किस्मत से ज़्यादा चाह नहीं पर,
उम्मीद से भी न कम लेंगे,
ये कदम नहीं अब रुकने वाले,
तनहा रहें फिर भी चलेंगे,
जीत सुनिश्चित नहीं है फिर भी,
आखिरी दम तक डट के लड़ेंगे,
सैकड़ों रातें काट लीं तनहा,
फिर अंधेरों से क्या हीं डरेंगे,
साँसें सलामत रहें बस मेरी,
ज़ख्मों को खुद से हीं भडेंगे,
भला वैसे भी कोई जीना है,
जिसमे न कोई ज़िद्द हो,
वो ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं,
जिसमे न कोई उम्मीद हो,
मौक़े यहाँ सबको हैं मिलते,
बारी सब की यहाँ पे आनी है,
उदहारण तू खुद तय कर ले,
जहान में इतनी तो कहानी है,
बिन कोशिश के ही हार जाना,
ये तो खुद से हीं बेईमानी है,
आज जो बिखड़ रहे तेरे फैसले से,
जिन जिन को आज हैरानी है,
कल जब जीतेगा तू देखना
सब कहेंगे
ये सूरत जानी पहचानी है,
भटका मत अपने मन को तू,
हौसलों को ना मरने दे,
बस धीरज रख मन में और,
क़दमों को बस चलने दे,
भूख मंज़िल की दब गई जो दिल में,
क्या करेगा जीत के फिर,
अगर तेरी खुद की 
साँसें हीं न तेरी मुरीद हो,
वो ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं,
जिसमे ना कोई उम्मीद हो..

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