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मैं यूं बसर कर पाऊंगा....

बेफिक्र मन से रास्तों पे अपने,

न जाने कब गुज़र मैं पाऊंगा,

अबकी जो मैं सहमा हूं खुद से,

मन की अज्ञात इस व्यथा से

जाने कब उबर मैं पाऊंगा,

जब दूर तलक

कोई अपना नहीं दिखता है मुझे,

तो मैं आईने से हूँ पुछ रहा,

गुमनामी के इस शहर में कब तक,

मैं यूं बसर कर पाऊंगा!

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