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थाम कर हाथों में पेंसिल, एक बार मेरी खातिर लिख दे....

थाम कर हाथों में पेंसिल,

एक बार मेरी खातिर लिख दे,

वक़्त न जिसे बदल पाए,

ऐसी मेरी तक़दीर लिख दे,

जो कह न सके कभी होंठ मुझसे,

वो थोड़े से बात लिख दे,

मैं कहां कह रहा मेरे हिस्से,

तू पूरी कायनात लिख दे,

इन टूटे अरमानों के बीच,

एक नई सी शुरुआत लिख दे,

ख्वाबों में अक्सर ढूंढते हैं,

मिलन के अब दिन रात लिख दे,

थाम कर हाथों में पेंसिल,

एक बार मेरी खातिर लिख दे!

सब मांगते हैं कल सुनहरा,

तू मेरा सुनहरा आज लिख दे,

नई मंजिल दे जा कोई,

नया कोई आगाज़ लिख दे,

रास्ता कल का बता दे या,

मेरे इश्क का अंजाम लिख दे,

तेरे हाथों अगर जीत नहीं तो,

मेरे हिस्से में मात लिख दे,

जो हक में हो वही देना मुझे,

नही चाहता मेरे हिस्से

तू कोई खैरात लिख दे,

तू ले जा सब तस्वीरें अपनी,

हिस्से में मेरे यादों की बारात लिख दे,

थाम कर हाथों में पेंसिल,

एक बार मेरी खातिर लिख दे!

दिल में जो है मेरे लिए,

वो थोड़े जज़्बात लिख दे,

दिल की इस बंजर जमीन के हिस्से,

थोड़ी सी बरसात लिख दे,

दूरियां बहुत सह ली हमने,

कुछ पल की अब मुलाक़ात लिख दे,

और अगर मैं तेरे लायक नहीं,

तो मेरी औकात लिख दे,

थाम कर हाथों में पेंसिल,

एक बार मेरी खातिर लिख दे!

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