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मेरे ख्वाईशो के पन्नो से, ऐ ज़िन्दगी कभी गुजर कर देखो.......

mere khwaishon ke panno se,ay zindagi kabhi gujar ke dekho..
मेरे ख्वाईशो के पन्नो से,
ऐ ज़िन्दगी कभी गुजर कर देखो,
जो गुजरे तुम धड़कन से मेरी,
सुकून दिल का खो जायेगा,
कैसे मैं रहता हूँ खुद में,
एहसास तुम्हे हो जायेगा,
की ख्वाबों को मन में दबा,
ख्वाइशों को मार कर,
हँसता हूँ फिर भी कैसे,
मालूम तुम्हे हो जायेगा,
फिर भी लगूँ अनजान अगर,
या मुझको न जान पाओ,
तो गम में मेरे करीब और,
खुशियों में मेरी संवर के देखो,
मेरे ख्वाईशो के पन्नो से,
ऐ ज़िन्दगी कभी गुजर कर देखो,
क्यूँ तू मेरे ख्वाबों को,
मनचाहा मोर न देती है,
क्यूँ तू बीच राहों में,
मुझे ला के चोर देती है,
बचत फिरता हूँ हर पल में,
दुनिया के जिन झमेलों से,
और हर पल में एक नयी उलझन,
दमन में थमा तू देती है,
जी कर देखो कभी मुझमे तुम,
फिर जान सकोगे मुझको बेहतर,
या मन के मेरे उलझनों में,
कभी तुम भी उलझ के देखो,
मेरे ख्वाईशो के पन्नो से,
ऐ ज़िन्दगी कभी गुजर कर देखो!