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मुझे मेरा घर याद आता है........

जब खुद की, की हुई गलतियों से,
सबक ये जिंदगी लेती है,
तन्हाईयाँ हौले से तभी,
मेरे दिल पे दस्तक देती है,
जब खुद को समझाने की,
कोशिशें कम पड़ जाती है,
जब हंसता चेहरा होता है पर,
आँखें नम पड़ जाती है,
जब कही किसी की बात कोई,
मन में घाव कर जाती है,
जब भुलाने से भी बात कोई,
मुझसे न भूली जाती है,
जब कोई बुरा सपना मन को,
भीतर हीं भीतर डराता है,
जब बेफिज़ूल की बातों से,
मन मेरा घबराता है,
जब अच्छे बुरे में मुझको कोई,
फर्क समझ न आता है,
जब दिल पे चोट लगती है,
या कोई दर्द सहा न जाता है,
मुझे तब मेरा घर याद आता है,
की वो पीछे छूटा मेरा
शहर याद आता है,
मुझे तब मेरा घर याद आता है,
शायद वही एक जगह है जहाँ,
मुझको बेहतर समझा गया,
खामियां भी निकाली गई मुझमें,
पर मुझसे हीं सब कहा गया,
जहाँ मुझ पर कभी जो आंच आई तो,
गम साथ में आ के काटा गया,
घर वो जहाँ मेरी खुशियों को,
मुझसे हीं अंत में बांटा गया,
घर वो जहां पे सीखा सब कुछ,
जीने का हर एक हीं ढंग,
घर वो जहां थी जीने में,
हर एक पल एक नई उमंग,
घर वो जहाँ अपनों के संग,
कोई पल भारी न लगा कभी,
मैं सोया जहाँ सुकून से सदा,
बेचैनियों में भी न जगा कभी,
घर वो जहां खाने में अलग एक,
प्यार का स्वाद होता था,
घर वो जहां चिंता फिक्र से,
दिल आजाद होता था,
घर वो जहां त्योहारों में,
एक अलग हीं रौनक होती थी,
घर वो जहां पे खुशियों की,
हर रोज हीं दस्तक होती थी,
कितना कुछ कहूं,
कितना सुनोगे आप मुझे,
सुनो वो जो कहा नही अभी,
तब समझ पाओगे मुझे,
मैं थक गया हूँ अब थोड़ा,
मैं थक गया हूँ अब थोड़ा,
दुनिया की इस भाग दौर से,
कुछ है जो कह न सका आज भी,
मेरी ख़ामोशी को तुम सुनो गौर से!

मेरे यार मेरे दोस्त मेरे भाई, तुम बहुत याद आओगे....

मेरे यार मेरे दोस्त मेरे भाई,

तुम बहुत याद आओगे,

तुम्हारे किस्से तुम्हारी बातें,

अब भी सोचते  हैं तो हंसते हैं,

न चाहते हुए भी आपस में,

जिक्र तुम्हारा कर हीं देते हैं,

किसी को यकीन

आज भी नहीं होता है की,

तुम जिस आशिकी पे सब की हंसते थे,

सीधे शब्दों में हम सब को,

अक्सर हीं तुम कोसते थे,

तुमसे तो बिलकुल भी किसी को,

उम्मीदें ऐसी थी हीं नहीं,

हम सब के बीच एक,

तुम्हीं तो समझदार लगते थे,

फिर तुम कैसे इक पल में,

जिंदगी से ऐसे हार गए,

सपने तुम्हारे भी थे फिर कैसे,

हर ख्वाइश को तुम मार गए,

आज भी पछतावा होता है,

की उन आखिरी पलों में हम में से

कोई साथ क्यों नहीं था तुम्हारे,

शायद कोई रहता उन पलों में,

तो होते तुम आज बीच हमारे,

इक बार सही पर हर दफा आपस में,

पूछते जरूर हैं एक दूजे से

की गलती आखिर थी किसकी,

तुम गलत थे या समय खराब था,

या वो शराबी दोस्त तुम्हारा,

साथ रह रहे थे तुम जिसके,

खैर इन बातों का कभी अंत न होगा,

तुमसे कहने को इतना कुछ है पास हमारे,

इक दफा घरवालों की हीं सोच लेते,

वो भी तो थे खास तुम्हारे,

तुम्हे खबर है क्या जरा भी,

तुम्हारे जाने के बाद,

मां का तुम्हारी हाल क्या था,

जिस दिन तुम गए

हम में से किसी को,

खाना तक रास न आ रहा था,

सुबह हीं तो बात हुई थी तुमसे,

यकीन नहीं हो रहा था की,

अब कभी लौट के तुम नहीं आओगे,

तुम खो चुके हो अनंत में अब,

वापस इस जनम में तो नहीं आओगे,

आते अगर तो पूछना था तुमसे,

की तुममें थी हिम्मत इतनी कहां से आई,

तुम तो बड़े डरपोक से थे,

फिर सांसें तुम्हारी खुद खतम करने को

खुद में हिम्मत कहां से जुटा पाई,

मालूम हुआ घर से तुम्हारे,

की उन आखिरी पलों में तुम रोए बहुत थे,

शायद तुम्हे पछतावा था अपने किए का,

बचा लो मुझे गलती हो गई,

उस पल में सबसे तुम ये कह रहे थे,

पर मेरे दोस्त तब देर चुकी थी,

सांसें तुम्हारी अब

तुम्हारी भी नहीं सुन रही थी,

दीपावली का दिन था वो,

और मातम पसरा था घर में तुम्हारे,

सांसें टूट गई थी अगले दिन और,

टूटे थे साथ उम्मीदें सारे,

हम सहमे थे कई दिन तक इतने की,

जिक्र तुम्हारा करने से भी डरते थे,

सोचते थे तुम्हे हीं बस,

और अंदर हीं अंदर मरते थे,

वक्त लगा पर धीरे धीरे,

जख्म सबके थे भरने लगे,

डिग्री पूरी हो गई थी अगले साल सब की,

सब जिंदगी में अपनी,

कुछ न कुछ थे करने लगे,

पर हां

तुम्हे भूले नहीं हैं,

सोचते हैं तुम भी अगर जो साथ होते तो,

जिंदगी में अपनी कुछ न कुछ तो जरूर होते,

खैर

अब तुम जहां कहीं भी

जिस दुनिया में हो,

खुश रहना तुम जहां भी हो,

तुम चाहे याद ना भी करो,

हमसे न भूले जाओगे,

मेरे  यार मेरे दोस्त मेरे भाई,

तुम बहुत याद आओगे!

जिंदगी तुम्हे फिर जी कर देखेंगे....

कभी जो फुरसत में होंगे तब,
उलझनों को अपनी सुलझा कर देखेंगे,
याद करेंगे बचपन और,
पत्थर नदी में फिर से फेंकेंगे,
अधुरे ख्वाइशों को छोड़ रखा है,
किसी एक खास मकसद से,
निपट लें जिम्मेदारियों से पहले,
जिंदगी तुम्हे फिर जी कर देखेंगे!

ज़माना कोशिशें नहीं देखता बस, परिणाम देखा करता है....

तुम्हारे हारने की राह,

ज़माना देख रहा एक टक से है,

लड़ाई तुम्हारी मन मेरे,

क़िस्मत से नहीं तुम्हारे हक़ से है,

करो कोशिश आखिरी सांस तक तुम,

परिणाम रब पे छोड़ दो,

ख़ामख़ा के लोगों से,

तुम चाहो तो रिश्ता तोड़ दो,

मंज़िल प्रतीक्षा में है तुम्हारी,

दिल को यही पैगाम दो,

जो भी मन की चिंताएं हैं,

उन चिंताओं को तुम विराम दो,

बहकाये जो मन को बातें कोई,

वो बात वहीँ फिर रोक दो,

जितनी भी तुममे शक्ति है,

सारी की सारी झोंक दो,

किसी को खबर नहीं तुमने सहा है कितना,

कोई यहाँ नहीं कभी संघर्ष देखा करता है,

तुम्हे कामयाब होना हीं होगा,

तुम्हे कामयाब होना हीं होगा,

ज़माना कोशिशें नहीं देखता बस,

परिणाम देखा करता है!

मैं यूं बसर कर पाऊंगा....

बेफिक्र मन से रास्तों पे अपने,

न जाने कब गुज़र मैं पाऊंगा,

अबकी जो मैं सहमा हूं खुद से,

मन की अज्ञात इस व्यथा से

जाने कब उबर मैं पाऊंगा,

जब दूर तलक

कोई अपना नहीं दिखता है मुझे,

तो मैं आईने से हूँ पुछ रहा,

गुमनामी के इस शहर में कब तक,

मैं यूं बसर कर पाऊंगा!

थोड़ी सी किस्मत रूठी है...

तकलीफें दिल में ले कर हुं चल रहा,

चेहरे की मुस्कान भले हीं झूठी है,

तय करूंगा मैं भी मंज़िल अपनी,

पूर्णतः आस अभी न टूटी है,

इक दिन झुकेगा आसमां भी,

तुम देखना खिदमत में मेरी,

लगन सच्ची इरादे नेक हैं मेरे,

बस थोड़ी सी किस्मत रूठी है!

किसी को मनचाहा किरदार नहीं मिलता...

करो कोशिशें कितनी भी चाहे,

ख्वाबों वाला वो संसार नहीं मिलता,

निकल जाए अगर हाथ से तो,

मौका यहाँ पे बार बार नहीं मिलता,

अजब है बातें इस दुनिया की,

अजब है दस्तूर इस दुनिया का,

किसी को जिंदगी नहीं मिलती तो,

किसी को मनचाहा किरदार नहीं मिलता!

थाम कर हाथों में पेंसिल, एक बार मेरी खातिर लिख दे....

थाम कर हाथों में पेंसिल,

एक बार मेरी खातिर लिख दे,

वक़्त न जिसे बदल पाए,

ऐसी मेरी तक़दीर लिख दे,

जो कह न सके कभी होंठ मुझसे,

वो थोड़े से बात लिख दे,

मैं कहां कह रहा मेरे हिस्से,

तू पूरी कायनात लिख दे,

इन टूटे अरमानों के बीच,

एक नई सी शुरुआत लिख दे,

ख्वाबों में अक्सर ढूंढते हैं,

मिलन के अब दिन रात लिख दे,

थाम कर हाथों में पेंसिल,

एक बार मेरी खातिर लिख दे!

सब मांगते हैं कल सुनहरा,

तू मेरा सुनहरा आज लिख दे,

नई मंजिल दे जा कोई,

नया कोई आगाज़ लिख दे,

रास्ता कल का बता दे या,

मेरे इश्क का अंजाम लिख दे,

तेरे हाथों अगर जीत नहीं तो,

मेरे हिस्से में मात लिख दे,

जो हक में हो वही देना मुझे,

नही चाहता मेरे हिस्से

तू कोई खैरात लिख दे,

तू ले जा सब तस्वीरें अपनी,

हिस्से में मेरे यादों की बारात लिख दे,

थाम कर हाथों में पेंसिल,

एक बार मेरी खातिर लिख दे!

दिल में जो है मेरे लिए,

वो थोड़े जज़्बात लिख दे,

दिल की इस बंजर जमीन के हिस्से,

थोड़ी सी बरसात लिख दे,

दूरियां बहुत सह ली हमने,

कुछ पल की अब मुलाक़ात लिख दे,

और अगर मैं तेरे लायक नहीं,

तो मेरी औकात लिख दे,

थाम कर हाथों में पेंसिल,

एक बार मेरी खातिर लिख दे!

कुछ यूँ ही.....

 जब उलझनों में खुद को,

उलझा सा मैं पाता हूँ,

चलते चलते राहों में जब,

अचानक रुक सा जाता हूँ,

आईने में अक्सर जब,

खुद को तलाशता रहता हूँ,

लोग पूछते हैं वजह फिर भी,

जब लोगों से छुपाता हूँ,

तुम्हें सोचता हूँ,

तुम्हें खोजता हूँ,

तू दिखती ना जब पास मेरे,

मैं थोड़ा सहम सा जाता हूँ,

आज भी सब कुछ वैसा हीं है,

दिन वही रातें भी वही,

ज़िद्द वही बातें भी वही,

दिल ढूढ़ता फिर जवाब यही,

क्यूँ साथ मेरे अब तू नहीं

क्यूँ साथ मेरे अब तू नहीं....

नाकामियां साजिशें हैरानियाँ....

नाकामियां साजिशें हैरानियाँ
सब खड़े मेरे सामने फिर भी,
ये कदम नहीं रुकने वाले,
बुलंद इरादे मेरे कहां,
इतनी आसानी से हैं झुकने वाले,
कुछ किस्से कुछ कहानियों को,
हम छोड़ आए हैं पीछे हीं,
ताल्लुक था जिनका उदासी से,

दिल को जो थे दुखने वाले! 

जिस पे है गुजरी वही जाना है..

सोचने से मंज़िल नहीं मिली किसी को,
जीता वही जो यहाँ लड़ा है,
अरे दुःख को भी इतनी फुर्सत कहाँ की,
किसी एक के हीं पीछे पड़ा है,
जिस पे है गुजरी वही जाना है,
दुःख की क्या है परिभाषा वरना ,
हर किसी को यहाँ यही है लगता,
दुःख उसका हीं बस सबसे बड़ा है!