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दोनों यूँही अपने सफर में गुम, तुझसे दूर मैं मुझसे दूर तुम.......

dono yunhi apne safar me goom......
दोनों यूँही अपने सफर में गुम,
तुझसे दूर मैं मुझसे दूर तुम,
ख्वाब न क्यूँ अब आते तेरे,
पूछा ये अपनी नींदों से,
ढूंढा तुझको जहाँ में बहुत,
तेरा पता भी पूछा परिंदो से,
कोशिशें भी की बहुत,
तेरे बारे में जान लेने की,
फिर समझाया खुद को ये भी,
तुझे गैर मान लेने की,
तब कहीं जा कर दिल ये,
बस थोड़ा सा संभला है,
अब पूछता जो हाल तेरा तो,
कह देता मुझे क्या मालूम,
दोनों यूँही अपने सफर में गुम,
तुझसे दूर मैं मुझसे दूर तुम,
व्यस्त तो मैं भी हूँ लेकिन,
इतना भी नहीं की तुझे भुला दूँ,
सहारा है तेरी यादों का,
इतना दम नहीं की उन्हें मिटा दूँ,
जिक्र करता हूँ आज भी सब से,
तू क्या जाने तेरी कितनी,
कहते हैं सब भूल गई होगी,
तुझे कहाँ मेरी कदर थी इतनी,
पर दिल अब भी स्वीकारे न,
तू व्यस्त है अपने आज में इतनी,
कुर्बान कर दी ज़िन्दगी तुझपे,
और तू बनी फिरती मासूम,
दोनों यूँही अपने सफर में गुम,
तुझसे दूर मैं मुझसे दूर तुम!