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aaj fir purana khwab mil gaya,aankhon ke aalmari se.. |
गिर के यूँ ही संभलने में,
तब भी डरते हैं अब भी,
तनहा राहों में चलने में,
कभी अपनों में तो कभी,
अकेला भी दिल ये डरता है,
सोच सोच के बात पुरानी,
खुद से कई बार ये लड़ता है,
फिर भी मन को संभल कर,
धड़कनो को बहला कर,
बस थोड़ा सा सुस्ताये ही थे,
बच के इस दुनियादारी से,
तभी एक पुराना ख्वाब मिल गया ,
आँखों की आलमारी से,
कभी संवर लिया अपनों में तो,
कभी अपनों को संभाला भी,
कभी कह दिया दुनिया से कुछ तो,
कभी ज़ुबान पर रहा ताला भी,
कभी अपने बन बैठे गैर,
कभी गैरों में ढूढ़ा अपनों को,
कभी हँस के जी लिया ख्वाब तो,
कभी टूटते देखा सपनो को,
सोचा जब पाया ही क्या,
धड़कनों की वफादारी से,
तभी एक पुराना ख्वाब मिल गया ,
आँखों की आलमारी से!
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