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अब तुम भी कुछ कहो ना....

ab tum bhi kuch kaho na....
एक आदत अजीब हो गई है,
तेरी यादों में हीं जीने की.
दुनिया से छिपा के अपने,
ग़मों को हँस के सीने की,
खोये खोये से होते हैं,
अक्सर मेरे रात और दिन,
भाता नहीं कुछ भी हमे,
हर ख़ुशी है सूनी मेरी तुम बिन,
तुम्हे देख लिया सब मिट गया,
फिर क्या भूख क्या नींद चैन,
तम्हारे होने से हीं सब कुछ है,
बिन तेरे सूने मेरे दिन रैन,
अब पास हो कर भी अनजान से,
यूँ तुम चुप रहो न,
सुन लिया न हाल मेरा,
अब तुम भी कुछ कहो ना!

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