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किसी को मनचाहा किरदार नहीं मिलता...

करो कोशिशें कितनी भी चाहे,

ख्वाबों वाला वो संसार नहीं मिलता,

निकल जाए अगर हाथ से तो,

मौका यहाँ पे बार बार नहीं मिलता,

अजब है बातें इस दुनिया की,

अजब है दस्तूर इस दुनिया का,

किसी को जिंदगी नहीं मिलती तो,

किसी को मनचाहा किरदार नहीं मिलता!

थाम कर हाथों में पेंसिल, एक बार मेरी खातिर लिख दे....

थाम कर हाथों में पेंसिल,

एक बार मेरी खातिर लिख दे,

वक़्त न जिसे बदल पाए,

ऐसी मेरी तक़दीर लिख दे,

जो कह न सके कभी होंठ मुझसे,

वो थोड़े से बात लिख दे,

मैं कहां कह रहा मेरे हिस्से,

तू पूरी कायनात लिख दे,

इन टूटे अरमानों के बीच,

एक नई सी शुरुआत लिख दे,

ख्वाबों में अक्सर ढूंढते हैं,

मिलन के अब दिन रात लिख दे,

थाम कर हाथों में पेंसिल,

एक बार मेरी खातिर लिख दे!

सब मांगते हैं कल सुनहरा,

तू मेरा सुनहरा आज लिख दे,

नई मंजिल दे जा कोई,

नया कोई आगाज़ लिख दे,

रास्ता कल का बता दे या,

मेरे इश्क का अंजाम लिख दे,

तेरे हाथों अगर जीत नहीं तो,

मेरे हिस्से में मात लिख दे,

जो हक में हो वही देना मुझे,

नही चाहता मेरे हिस्से

तू कोई खैरात लिख दे,

तू ले जा सब तस्वीरें अपनी,

हिस्से में मेरे यादों की बारात लिख दे,

थाम कर हाथों में पेंसिल,

एक बार मेरी खातिर लिख दे!

दिल में जो है मेरे लिए,

वो थोड़े जज़्बात लिख दे,

दिल की इस बंजर जमीन के हिस्से,

थोड़ी सी बरसात लिख दे,

दूरियां बहुत सह ली हमने,

कुछ पल की अब मुलाक़ात लिख दे,

और अगर मैं तेरे लायक नहीं,

तो मेरी औकात लिख दे,

थाम कर हाथों में पेंसिल,

एक बार मेरी खातिर लिख दे!

कुछ यूँ ही.....

 जब उलझनों में खुद को,

उलझा सा मैं पाता हूँ,

चलते चलते राहों में जब,

अचानक रुक सा जाता हूँ,

आईने में अक्सर जब,

खुद को तलाशता रहता हूँ,

लोग पूछते हैं वजह फिर भी,

जब लोगों से छुपाता हूँ,

तुम्हें सोचता हूँ,

तुम्हें खोजता हूँ,

तू दिखती ना जब पास मेरे,

मैं थोड़ा सहम सा जाता हूँ,

आज भी सब कुछ वैसा हीं है,

दिन वही रातें भी वही,

ज़िद्द वही बातें भी वही,

दिल ढूढ़ता फिर जवाब यही,

क्यूँ साथ मेरे अब तू नहीं

क्यूँ साथ मेरे अब तू नहीं....

नाकामियां साजिशें हैरानियाँ....

नाकामियां साजिशें हैरानियाँ
सब खड़े मेरे सामने फिर भी,
ये कदम नहीं रुकने वाले,
बुलंद इरादे मेरे कहां,
इतनी आसानी से हैं झुकने वाले,
कुछ किस्से कुछ कहानियों को,
हम छोड़ आए हैं पीछे हीं,
ताल्लुक था जिनका उदासी से,

दिल को जो थे दुखने वाले! 

जिस पे है गुजरी वही जाना है..

सोचने से मंज़िल नहीं मिली किसी को,
जीता वही जो यहाँ लड़ा है,
अरे दुःख को भी इतनी फुर्सत कहाँ की,
किसी एक के हीं पीछे पड़ा है,
जिस पे है गुजरी वही जाना है,
दुःख की क्या है परिभाषा वरना ,
हर किसी को यहाँ यही है लगता,
दुःख उसका हीं बस सबसे बड़ा है!