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haqiqat ki duniya sapno ka safar.... |
खुदा ने एक एहसान किया,
सिमटा रहुँ खुद में ही,
इसलिए आँखों में ख्वाब दिया,
हर वक़्त आँखों में घूमते,
बचपन के ख्वाब वो अनोखे से,
नाज़ुक थे इतने की टूट जाते थे,
हवा के बस एक झोंके से,
वक़्त लगा समझने में पर,
समय रहते ये जान गया,
ज़िंदगी की हक़ीक़त को,
अब अच्छे से पहचान गया,
पर समझाए कैसे ये बात इसे,
की है ये कैसा भंवर,
हक़ीक़त की दुनिया सपनो का सफर,
माँ की ममता के नीचे,
बीती बचपन की हर रात,
तारीफ करे हर कोई जिससे,
सिखाई माँ ने हर वो बात,
सिख कर इन बातों को ही,
हर पल मैं आगे बढ़ता रहा,
करके छाती चौड़ी अपनी,
ये बात सबसे कहता रहा,
दुआएँ मेरी माँ की साथ है हर वक़्त,
तभी तो बना मैं इतना निडर,
हक़ीक़त की दुनिया सपनो का सफर,
पापा के कन्धों पे बैठ,
हर सुबह सैर पर जाते थे,
क्या अच्छा और क्या है बुरा,
पापा ये फ़र्क़ बताते थे,
इन बातों ने हीं सोच बदली,
और बना दिया मुझे बेफिक्र,
हक़ीक़त की दुनिया सपनो का सफर,
भाई बहन से ज़िद्द करना,
सब बहाना था झगड़ने का
तब का वो तरीका था शायद,
आपस में प्यार जताने का,
एक दूजे से हीं उलझे उलझे,
बीत गए बचपन के दिन,
काट रहा हूँ वक़्त मैं,
हर पल में अब उनके बिन,
एहसास इन रिश्तों के साथ हैं मेरे,
चाहे कैसी भी हो ज़िंदगी की डगर,
हक़ीक़त की दुनिया सपनो का सफर,
अकेली लगी दुनिया जब भी,
दिल ने कई नए दोस्त बनाये,
मिला साथ कुछ ऐसे उनका,
की हर मोड़ पे वो काम आये,
दिल आज भी ये करता है,
लौटा के वक़्त वापस लाने को,
जब साथ थे हम सभी,
वो वक़्त फिर से बिताने को,
क्यों चले गए बिछड़ के हमसे,
न जाने आज वो किधर,
हक़ीक़त की दुनिया सपनो का सफर!
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