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मैं आज भी इस उम्र में, बचपन अपना जी लेता हूँ....


main aaj bhi is umar me bachpan apna jee leta hun....
कभी स्कूल की गलियों में,
नयी यादें गढ़ लेता हूँ,
तो कभी दीवार पर लिखे,
वो सुविचार पढ़ लेता हूँ,
कभी बच्चों सी ज़िद्द पाले,
घर वालों से लड़ लेता हूँ,
तो कभी पूल पर रुक कर के,
रेलगाड़ियों के डिब्बे गीन लेता हूँ,
मैं आज भी इस उम्र में,
बचपन अपना जी लेता हूँ,
कभी भींगने से डरता हूँ तो,
कभी बारीश में भीग लेता हूँ,
कभी माँ मुझे डांटती है तो,
चुप हो के सुन लेता हूँ,
कभी कभी मस्ती में यूँही,
ऊँचे पेड़ों पे चढ़ लेता हूँ,
मैं आज भी इस उम्र में,
बचपन अपना जी लेता हूँ,
कभी घर की छत पे चढ़,
पतंगबाजी कर लेता हूँ,
तो कभी गली के बच्चों संग,
क्रिकेट हीं खेल लेता हूँ,
कभी बारिश के पानी में,
कागज की नाव दौड़ा लेता हूँ,
तो कभी झील के पानी में,
कोई कंकड़ हीं फेंक लेता हूँ,
मैं आज भी इस उम्र में,
बचपन अपना जी लेता हूँ!

हक़ीक़त की दुनिया सपनो का सफर....

haqiqat ki duniya sapno ka safar....
बना कर के इंसान मुझे,
खुदा ने एक एहसान किया,
सिमटा रहुँ खुद में ही,
इसलिए आँखों में ख्वाब दिया,
हर वक़्त आँखों में घूमते,
बचपन के ख्वाब वो अनोखे से,
नाज़ुक थे इतने की टूट जाते थे,
हवा के बस एक झोंके से,
वक़्त लगा समझने में पर,
समय रहते ये जान गया,
ज़िंदगी की हक़ीक़त को,
अब अच्छे से पहचान गया,
पर समझाए कैसे ये बात इसे,
की है ये कैसा भंवर,
हक़ीक़त की दुनिया सपनो का सफर,
माँ की ममता के नीचे,
बीती बचपन की हर रात,
तारीफ करे हर कोई जिससे,
सिखाई माँ ने हर वो बात,
सिख कर इन बातों को ही,
हर पल मैं आगे बढ़ता रहा,
करके छाती चौड़ी अपनी,
ये बात सबसे कहता रहा,
दुआएँ मेरी माँ की साथ है हर वक़्त,
तभी तो बना मैं इतना निडर,
हक़ीक़त की दुनिया सपनो का सफर,
पापा के कन्धों पे बैठ,
हर सुबह सैर पर जाते थे,
क्या अच्छा और क्या है बुरा,
पापा ये फ़र्क़ बताते थे,
इन बातों ने हीं सोच बदली,
और बना दिया मुझे बेफिक्र,
हक़ीक़त की दुनिया सपनो का सफर,
भाई बहन से ज़िद्द करना,
सब बहाना था झगड़ने का
तब का वो तरीका था शायद,
आपस में प्यार जताने का,
एक दूजे से हीं उलझे उलझे,
बीत गए बचपन के दिन,
काट रहा हूँ वक़्त मैं,
हर पल में अब उनके बिन,
एहसास इन रिश्तों के साथ हैं मेरे,
चाहे कैसी भी हो ज़िंदगी की डगर,
हक़ीक़त की दुनिया सपनो का सफर,
अकेली लगी दुनिया जब भी,
दिल ने कई नए दोस्त बनाये,
मिला साथ कुछ ऐसे उनका,
की हर मोड़ पे वो काम आये,
दिल आज भी ये करता है,
लौटा के वक़्त वापस लाने को,
जब साथ थे हम सभी,
वो वक़्त फिर से बिताने को,
क्यों चले गए बिछड़ के हमसे,
न जाने आज वो किधर,
हक़ीक़त की दुनिया सपनो का सफर!

रास्ते कभी खत्म नहीं होते, लोग अक्सर हिम्मत हार जाते हैं....


raaste kabhi khatam nahi hote,
log aksar himmat haar jaate hain.
रास्ते कभी खत्म नहीं होते,
लोग अक्सर हिम्मत हार जाते हैं,
मुसीबतों को जब ये कदम,
हँस के यूँही ठुकराती है,
तब छोटी छोटी कोशिशों से हीं,
जीत उभर कर आती है,
यूँही नहीं हो जाते पूरे,
सपने रातों रात में,
हर कामयाबी के पीछे,
कई रात खाली जाती है,
दुनिया उन्हें अपनाती है,
जो अपने सारे ग़मों को,
हँस के स्वीकार जाते हैं,
रास्ते कभी खत्म नहीं होते,
लोग अक्सर हिम्मत हार जाते हैं,
ज़िंदगी का अनूठा नियम है ये,
सुख दुःख तो आता जाता है,
असल में वही एक वीर है जो,
खुद को यहाँ जीत पाता है,
समझौते जिसको पसंद नहीं,
मुश्किल से न जो घबराता है,
सपने तो सभी सजाते हैं पर,
असल में मंज़िल वही पाता है,
वो नहीं जो डर के दुनिया से,
ख्वाइश अपनी मार जाते हैं,
रास्ते कभी खत्म नहीं होते,
लोग अक्सर हिम्मत हार जाते हैं!

हमने फ्यूचर की बस के इंतज़ार में, बचपन की आइस्क्रीम को पिघलते देखा है....

humne future ki bus ke intzaar me,bachpan ki ice-cream ko pighalte dekha hai....
हर शाम की लाली में खो कर,
सूरज को ढलते देखा है,
झूठे सपनो की चाह में हमने,
रातों को गुजरते देखा है,
चाँद है कोशों दूर हमसे पर,
नदी के ठहरे जल में अक्सर,
चांदनी को मचलते देखा है,
उम्र का तकाज़ा हमसे न जताओ साहब,
इतनी सी उम्र में हीं हमने,
जीने का हर रूप देखा है,
हमने फ्यूचर की बस के इंतज़ार में,
बचपन की आइस्क्रीम को पिघलते देखा है,
जीने की खुशियों के बीच,
किसी की याद को खलते देखा है,
लबों पे हँसी रख के अक्सर,
हर दिल को जलते देखा है,
टूटती निगाहों में भी हमने,
नए ख्वाब मचलते देखा है,
हमसे न पूछो ज़िंदगी की,
सफर के रास्तों के बारे में साहब,
जरुरत पड़ने पर हमने,
अपनों को बदलते देखा है,
अपने हीं यादों में अपना,
खोया हुआ बचपन देखा है,
माँ की ममता में हमने,
भगवन के रूप को देखा है,
खुद के सीने में हमने,
मंज़िल की भूख को देखा है,
हमसे न सुनाओ,
मुसीबतें इन राहों की,
हमने बिन पंखों के भी,
लहरों को उड़ते देखा है!