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ए "ज़िन्दगी" तू कौन है....

ए "ज़िन्दगी" तू कौन है,
सपनो की एक दुनिया है,
या अपनों का एक बंधन है,
खुशियों का अनोखा मेल है,
या रिश्तों का अदभुद खेल है,
रश्मों की एक डोर है,
या घुटन का एक शोर है,
जीने की कोई आज़ादी या,
मन का छिपा कोई चोर है,
बचपन की एक मिठास है,
या जीवन भड़ की प्यास है,
किस्मत की अनोखी हार है,
या अपनों का एक प्यार है,
मंज़िल की एक ढ़ाल है या,
दोस्ती की एक मिशाल है,
प्यार का एक ज़माना है,
या खुश रहने का बहाना है,
पलकों का बिछडा सपना है या,
दूर हुआ कोई अपना है,
खुशियों का कोई आफ़ताब है,
या बीती यादों का किताब है,
लाखों उलझन है जीवन के,
और जवाब छुपे हैं कण कण में,
हर रोज की यही कहानी है,
फिर आज क्यों ये परेशान है,
पूछने पर अब क्यों मौन है,
तू हीं बता दे अब खुद को,
ए "ज़िंदगी" तू कौन है!

हारा भी जरूर हूँ वक़्त से, पर अभी ज़िंदा हूँ मैं....

आज हार मान ली है अपनी,
कल फिर लौट के आऊंगा,
जो चुन ली है मंज़िल अपनी,
उसे अंजाम तक पहुँचाऊँगा,
रोक सके तो रोक ले,
राह कि हर बाधा मुझे,
अब तो जान दे कर भी खुद से,
निभाना है हर वादा मुझे,
कुछ गलत फैसलों पे अपने,
भले हीं शर्मिंदा हूँ मैं,
हारा भी जरूर हूँ वक़्त से,
पर अभी ज़िंदा हूँ मैं,
देखा है अक्सर मैंने,
पंछियों को दूर उड़ते गगन में,
आसमा छूने कि चाह लिए,
देखी है ज़िद्द एक उनके लगन में,
कोशिशों से जो हारा न कभी,
आसमां का वही परिंदा हूँ मैं,
हारा भी जरूर हूँ वक़्त से,
पर अभी ज़िंदा हूँ मैं..