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पुछे घर की लाडली, बाबुल क्यूँ तेरी प्रीत पराई....

pooche ghar ki laadli babul kyun teri preet parai....
पुछे घर की लाडली,
बाबुल क्यूँ तेरी प्रीत पराई,
ले कर जन्म बेटी का,
इस घर में जब मैं आई थी,
खुश थे लोग इतने की,
हर चेहरे को हँसता पाई थी,
हर बात सीखा मैंने जहाँ,
फिर पराया क्यूँ था मेरा हर रिश्ता,
जब घर तेरा छोड़ना ही था,
फिर मैं क्यों तेरे घर आई,
पुछे घर की लाडली,
बाबुल क्यूँ तेरी प्रीत पराई,
कर के कन्यादान मेरा,
रो रहे थे मेरे साथ तुम भी,
दुनिया के रीती रिवाज़ों में,
मजबूर से थे उस पल तुम भी,
दे कर हाथों में मेरा हाथ,
जोड़ दिया रिश्ता गैरों के साथ,
हो गए पराये इक पल में अपने,
रब ने कैसी ये रीत बनाई,
पुछे घर की लाडली,
बाबुल क्यूँ तेरी प्रीत पराई!